“तो क्या हुआ तुम देख दुनिया नहीं देख सकते, कुछ ऐसा करो कि दुनिया तुम्हें देखें।” मां के इन प्रेरणादायक शब्दों ने भावेश कुमार भाटिया की जिंदगी को पूरी तरह से बदल दिया। उनकी उम्र सिर्फ़ 23 वर्ष थी जब उनकी आँखों की रोशनी धीरे-धीरे चली गई। उनकी खुशहाल जिंदगी में अचानक अंधेरा सा छा गया। उनके सपने और योजनाएँ अंधेरे में कहीं लुप्त हो गए थे। उन्हें पढ़ाई कंप्लीट कर कैरियर बनाना था, नौकरी करनी थी, लेकिन उनके हालात इतने ज्यादा खराब थे कि ठेले पर मोमबत्तियाँ बेचनी पड़ी। यहाँ तक कि उनके पास पैसे नहीं थे कि वे दुकान खड़ी कर सकें। आईए जानें फिर कैसे की उन्होंने इतनी तरक्की और बन गए करोड़पति?
मां की मौत से टूट गए थे भावेश
मां की अचानक मौत के बाद भावेश भाटिया बिल्कुल टूट गए थे लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने मां के आदर्शों को याद करते हुए अपने सपनों को पूरा किया और मोमबत्तियों के व्यापार के लिए ज़रूरी कदम उठाए। उनके विवाह के बाद उनकी पत्नी नीता ने उनके साथ मिलकर कंपनी की क्रेडिबिलिटी और भी बढ़ावा दिया।
कैसे मिले पत्नी नीता से?
वह घर-घर जाकर मोमबत्तियां बेचने लगे थे। उनके एक दोस्त के पास एक ठेला था जिसे उन्होंने 50 रुपये में किराए पर लेने के बाद मोमबत्तियों की बिक्री की शुरूआत की थी। वे कैंडल्स बेचकर कमाई करते थे और अपनी कमाई में से 25 रुपये बचाकर रख लेते थे।
इसी बीच एक दिन उनकी मुलाकात नीता से हुई। उस मुलाकात के बाद उन्हें एक दूसरे से प्यार हो गया और फिर उन दोनों ने शादी कर ली। नीता के आने के बाद उनके जीवन में कई बदलाव हुए। उन्होंने मानो अपनी नयी शुरुआत में एक नयी उम्मीद को पा लिया हो। भावेश अब कैंडल बनाते और नीता उन्हें बेचती थीं। समय के साथ उन्होंने एक स्कूटर और फिर एक वैन ख़रीदा जिससे कि उनका काम और भी बढ़ सके। उनकी मेहनत और संघर्ष से काम की वृद्धि हुई और उनके व्यवसाय ने नया मोड़ लिया।
मां की बात ने कर दिया मोटिवेट
मां के मोटिवेशन से प्रेरित भावेश ने मां के आदर्शों के मुताबिक कठिनाईयों का सामना किया। उनकी मां ने उनसे कहा था,”तो क्या हुआ तुम दुनिया नहीं देख सकते कुछ ऐसा करो कि दुनिया तुम्हें देखें”। इसी से इंस्पायर हो कर उन्होंने नेशनल एसोसिएशन फॉर द ब्लाइंड स्कूल से कैंडल मेकिंग का लेसन लिया और मोमबत्तियाँ बनाना शुरू किया। पहले तो बेचने का मौका कहीं नहीं मिला लेकिन उनकी मेहनत और संघर्ष ने उन्हें सफलता की ओर आगे बढ़ने का मार्ग दिखाया।
मेहनत का मिला फल
भावेश का प्रयास बहुत ही संघर्षपूर्ण रहा। उन्होंने सनराइज कैंडल कंपनी की स्थापना की और उनकी मेहनत ने उन्हें कई बड़ी कंपनियों से आर्डर प्राप्त करने में मदद की। उनका प्रयत्न अनेक मज़बूर लोगो को रोजगार प्रदान करने का था और वे इसमें सफल भी रहे जिससे उन्होंने समाज के लिए भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। आज उनकी कंपनी सनराइज कैंडल बड़ी मात्रा में मोमबत्तियों के उत्पादन में विशेषज्ञता प्राप्त कर चुकी है और वे गर्व से एक सफल व्यवसायी हैं।
कैसे बनी कंपनी?
वर्ष 1994 में भावेश कुमार ने सनराइज कैंडल कंपनी की स्थापना की। इस कदम से उनके जीवन में नए दिशा-निर्देश की शुरुआत हुई। इस कंपनी की शुरुआत हो गई थी लेकिन शुरुआत में कोई आर्डर नहीं आ रहे थे। फिर एक दोस्त की सहायता से उन्होंने एक एक्ज़ीबिशन आयोजित की। उन्होंने इस प्रदर्शनी में 12,000 से अधिक अलग अलग डिज़ाइन वाली कैंडल्स को प्रस्तुत किया।
उन्होंने अपनी मानवीय और सामाजिक जिम्मेदारियों का आदर किया और उनके साथ आगे बढ़ने का एक संकल्प लिया। उन्होंने अपनी कंपनी में 9,000 दिव्यांगजनों को रोजगार प्रदान करके उनके जीवन को सशक्त बनाया। वर्तमान में उनकी कंपनी सनराइज कैंडल 12,000 से अधिक मोमबत्तियों के विभिन्न डिजाइन बनती है जिन्हें भारत के साथ ही दुनिया की 1,000 से भी अधिक मल्टीनेशनल कंपनियां खरीदती हैं। उनकी कंपनी अब एक 350 करोड़ रुपये के टर्नओवर वाली बड़ी कंपनी बन चुकी है।
आनंद महिंद्रा द्वारा भी आई सलामी
महिंद्रा एंड महिंद्रा के चेयरमैन आनंद महिंद्रा भी भावेश कुमार की इंस्पीरेशन बने। उन्होंने अपने सोशल मीडिया पेज पर भावेश कुमार के संघर्ष और सफलता की कहानी से जुड़े एक वीडियो को साझा किया। उन्होंने उस वीडियो को ट्वीट करके भावेश की महानता की प्रशंसा की और उनकी हिम्मत की सराहना की। आनंद महिंद्रा ने उनकी उम्मीद, प्रेरणा और उत्कृष्टता को सलाम किया, जिनसे वे समाज में एक महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक व्यक्ति बने।
उनकी कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि संघर्षों और परिश्रम के माध्यम से हम किसी भी मुश्किल का सामना कर सकते हैं और अपने सपनों को हकीकत में बदलने का साहस रख सकते हैं।
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